वासुदेव बलवंत फडके जीवनी | Biography of Vasudev Balwant Phadke in Hindi
नमस्कार दोस्तों, आज हम वासुदेव बलवंत फडके के विषय पर जानकारी देखने जा रहे हैं।
नाम: वासुदेव बलवंत फड़के
जन्मतिथि: 4 नवंबर 1845
जन्म स्थान: शिरधोने गांव, रायगढ़ जिला, महाराष्ट्र
धर्म: हिंदू
राष्ट्रीयता: भारतीय
पिता: बलवंत फड़के
माता : सरस्वतीबाई
वासुदेव बलवंत फड़के का जन्म
भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी वासुदेव बलवंत फड़के का जन्म 4 नवंबर, 1845 को हुआ था। उन्होंने 19वीं सदी के अंत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। फड़के को विशेष रूप से महाराष्ट्र राज्य में अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह आयोजित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है। उनका जन्मस्थान शिरधोन, वर्तमान रायगढ़ जिले, महाराष्ट्र, भारत का एक गाँव था।
एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में वासुदेव बलवंत फड़के का जीवन और गतिविधियाँ भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, क्योंकि वह उन शुरुआती नेताओं में से एक थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन से भारत की स्वतंत्रता की वकालत की थी।
वासुदेव बलवंत फड़के की शिक्षा
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख व्यक्ति वासुदेव बलवंत फड़के ने पारंपरिक अर्थों में औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की। उनके जीवन और गतिविधियों को भारतीय स्वतंत्रता के लिए उनके समर्पण और ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ सशस्त्र प्रतिरोध के आयोजन में उनके नेतृत्व द्वारा चिह्नित किया गया था। यहां उनके जीवन और शिक्षा का एक सिंहावलोकन दिया गया है:
प्रारंभिक जीवन: वासुदेव बलवंत फड़के का जन्म 4 नवंबर, 1845 को शिरधोन गांव में हुआ था, जो भारत के महाराष्ट्र के वर्तमान रायगढ़ जिले में स्थित है। उनका जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था।
औपचारिक शिक्षा का अभाव: फड़के एक गरीब पृष्ठभूमि से थे और उनकी औपचारिक शिक्षा तक पहुँच नहीं थी। अपने परिवार की आर्थिक स्थिति के कारण उन्हें कम उम्र में ही काम करना शुरू करना पड़ा।
प्रभाव और आदर्श: औपचारिक शिक्षा की कमी के बावजूद, फड़के ज्योतिराव फुले और महात्मा ज्योतिराव फुले जैसे समाज सुधारकों और नेताओं के विचारों से गहराई से प्रभावित थे। वह सामाजिक न्याय और भारतीय समाज में उत्पीड़ित वर्गों की बेहतरी के लिए उनके आह्वान से प्रेरित थे।
कार्य अनुभव: फड़के ने कुछ समय के लिए पुणे में एक क्लर्क के रूप में काम किया, जिससे उन्हें निचली जाति और उत्पीड़ित समुदायों के साथ होने वाले अन्याय और भेदभाव का सामना करना पड़ा।
क्रांतिकारी गतिविधियाँ: भारत की स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय की इच्छा से प्रेरित होकर वासुदेव बलवंत फड़के क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गये। उन्होंने साथी भारतीयों को संगठित किया और ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों के खिलाफ प्रतिरोध के कार्यों में उनका नेतृत्व किया।
सशस्त्र विद्रोह: फड़के को 19वीं सदी के अंत में महाराष्ट्र राज्य में अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह आयोजित करने के लिए जाना जाता है। क्षेत्र में ब्रिटिश शासन को चुनौती देने के लिए एक सेना जुटाने के उनके प्रयासों ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक प्रमुख व्यक्ति बना दिया।
कैद और कारावास: 1879 में, अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह भड़काने के वासुदेव बलवंत फड़के के प्रयासों के कारण औपनिवेशिक अधिकारियों ने उन्हें पकड़ लिया। बाद में उन पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
विरासत: वासुदेव बलवंत फड़के का भारतीय स्वतंत्रता के प्रति समर्पण और देश की आजादी के लिए अपनी स्वतंत्रता का बलिदान देने की इच्छा ने उन्हें भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक स्थायी स्थान दिलाया है। उन्हें उन शुरुआती नेताओं में से एक के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने ब्रिटिश शासन को चुनौती दी और दूसरों को स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।
वासुदेव बलवंत फड़के का जीवन इस विचार का प्रमाण है कि इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बनने के लिए शिक्षा और औपचारिक स्कूली शिक्षा ही एकमात्र रास्ता नहीं है। न्याय, सामाजिक सुधार और भारतीय स्वतंत्रता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अवधि के दौरान एक सम्मानित नेता और प्रतिरोध का प्रतीक बना दिया।
वासुदेव बलवंत फड़के की कुश्ती ट्रिक्स की जानकारी
वासुदेव बलवंत फड़के, जो 19वीं शताब्दी के अंत में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी भूमिका के लिए जाने जाते हैं, आमतौर पर कुश्ती या कुश्ती के दांव-पेचों से जुड़े नहीं हैं। फड़के को मुख्य रूप से ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ सशस्त्र प्रतिरोध आयोजित करने में उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों और नेतृत्व के लिए याद किया जाता है, खासकर भारत के महाराष्ट्र राज्य में।
यह संभव है कि फड़के के जीवन के कुछ ऐतिहासिक उपाख्यान या कम-ज्ञात पहलू हों जिनमें उनकी शारीरिक शक्ति या कौशल शामिल हो, लेकिन ऐसे विवरण ऐतिहासिक अभिलेखों में व्यापक रूप से दर्ज नहीं किए जा सकते हैं।
यदि आपके पास वासुदेव बलवंत फड़के की कुश्ती की चालों से संबंधित विशिष्ट जानकारी या उपाख्यान हैं, तो अधिक संदर्भ और सटीक जानकारी के लिए ऐतिहासिक ग्रंथों, जीवनियों, या अभिलेखों से परामर्श लेना आवश्यक होगा जो उनके जीवन और गतिविधियों पर केंद्रित हैं।
वासुदेव बलवंत फड़के के परिवार एवं बच्चों की जानकारी
19वीं शताब्दी के अंत में एक प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता सेनानी वासुदेव बलवंत फड़के ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के उद्देश्य से क्रांतिकारी गतिविधियों का जीवन व्यतीत किया। पारंपरिक अर्थों में उनका कोई परिवार नहीं था, क्योंकि उन्होंने खुद को पूरी तरह से भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित कर दिया था। इसलिए, उनके परिवार या बच्चों के बारे में व्यापक रूप से प्रलेखित जानकारी उपलब्ध नहीं है।
फड़के का जीवन अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र प्रतिरोध आयोजित करने में उनके नेतृत्व द्वारा चिह्नित किया गया था, और उन्होंने अपना अधिकांश समय यात्रा करने, साथी भारतीयों को संगठित करने और विद्रोह का नेतृत्व करने में बिताया। स्वतंत्रता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता इतनी प्रबल थी कि उनका पारिवारिक जीवन भी व्यवस्थित नहीं था।
हालाँकि उनके व्यक्तिगत जीवन के बारे में सीमित ऐतिहासिक जानकारी हो सकती है, वासुदेव बलवंत फड़के को मुख्य रूप से भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी नेता के रूप में उनकी भूमिका के लिए याद किया जाता है। देश की आज़ादी की लड़ाई में उनके योगदान ने उन्हें भारतीय इतिहास में एक स्थायी स्थान दिलाया है।
भारत के प्रथम क्रांतिकारी कौन थे?
वासुदेव बलवंत फड़के को भारत का पहला क्रांतिकारी माना जाता है। उनका जन्म 1845 में बॉम्बे के ठाणे जिले (अब महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में) के शिरधोन गांव में एक मराठी चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह एक मेधावी छात्र थे और पढ़ाई में बहुत अच्छे थे। उन्होंने 1862 में बॉम्बे विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। स्नातक होने के बाद, उन्होंने कुछ वर्षों तक सरकार के लिए काम किया। हालाँकि, वह सरकार की नीतियों से असंतुष्ट थे और उन्होंने क्रांतिकारी बनने का फैसला किया।
1879 में फड़के ने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह शुरू किया। उन्होंने रामोशी योद्धाओं की एक सेना खड़ी की और कोंकण क्षेत्र में ब्रिटिश ठिकानों पर हमला किया। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष का आह्वान करते हुए एक उद्घोषणा भी जारी की।
फड़के के विद्रोह से ब्रिटिश सरकार सकते में आ गयी। उन्होंने उनकी और उनके अनुयायियों की बड़े पैमाने पर खोज शुरू की। अंततः फड़के को पकड़ लिया गया और 1883 में फाँसी पर लटका दिया गया।
अपने अल्प जीवन के बावजूद, फड़के के विद्रोह का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। उन्होंने बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी सहित कई अन्य क्रांतिकारियों को प्रेरित किया। उन्हें भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के संस्थापकों में से एक माना जाता है।
यहां कुछ कारण दिए गए हैं कि क्यों वासुदेव बलवंत फड़के को भारत का पहला क्रांतिकारी माना जाता है:
वासुदेव बलवंत फड़के को इतिहास में क्यों जाना जाता है?
वासुदेव बलवंत फड़के को इतिहास में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रदूतों में से एक के रूप में जाना जाता है। वह ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह शुरू करने वाले पहले भारतीय क्रांतिकारी थे। वह इस तरह के विद्रोह का नेतृत्व करने वाले पहले गैर-शाही भी थे।
फड़के का जन्म 1845 में एक मराठी चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह एक प्रतिभाशाली छात्र थे और अपनी पढ़ाई में उत्कृष्ट थे। उन्होंने 1862 में बॉम्बे विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। स्नातक होने के बाद, उन्होंने कुछ वर्षों तक सरकार के लिए काम किया। हालाँकि, वह सरकार की नीतियों से असंतुष्ट थे और उन्होंने क्रांतिकारी बनने का फैसला किया।
1879 में फड़के ने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह शुरू किया। उन्होंने रामोशी योद्धाओं की एक सेना खड़ी की और कोंकण क्षेत्र में ब्रिटिश ठिकानों पर हमला किया। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष का आह्वान करते हुए एक उद्घोषणा भी जारी की।
फड़के के विद्रोह से ब्रिटिश सरकार सकते में आ गयी। उन्होंने उनकी और उनके अनुयायियों की बड़े पैमाने पर खोज शुरू की। अंततः फड़के को पकड़ लिया गया और 1883 में फाँसी पर लटका दिया गया।
अपने अल्प जीवन के बावजूद, फड़के के विद्रोह का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। उन्होंने बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी सहित कई अन्य क्रांतिकारियों को प्रेरित किया। उन्हें भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के संस्थापकों में से एक माना जाता है।
वासुदेव बलवंत फड़के को इतिहास में क्यों जाना जाता है इसके कुछ कारण यहां दिए गए हैं:
वह ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह शुरू करने वाले पहले भारतीय क्रांतिकारी थे।
वह इस तरह के विद्रोह का नेतृत्व करने वाले पहले गैर-शाही व्यक्ति थे।
उनके विद्रोह ने बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी सहित कई अन्य क्रांतिकारियों को प्रेरित किया।
उन्हें भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के संस्थापकों में से एक माना जाता है।
फड़के की विरासत उन बलिदानों की याद दिलाती है जो प्रारंभिक भारतीय क्रांतिकारियों ने स्वतंत्रता की लड़ाई में दिए थे। वह उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा हैं जो स्वतंत्रता और न्याय की शक्ति में विश्वास करते हैं।
वासुदेव बलवंत फड़के की माता का निधन हो गया
वासुदेव बलवंत फड़के की मां, सरस्वती बाई फड़के का निधन 17 जनवरी, 1872 को ब्रिटिश भारत के महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के शिरधोन में हुआ था। वह 57 वर्ष की थीं.
फड़के पुणे में सैन्य लेखा विभाग में क्लर्क के रूप में कार्यरत थे जब उनकी माँ बीमार पड़ गईं। उसने उसके साथ रहने के लिए छुट्टी का अनुरोध किया, लेकिन उसके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया। जब वह दूर था तब उसकी माँ की मृत्यु हो गई।
फड़के को अपनी माँ की मृत्यु से बहुत दुःख हुआ। उनका मानना था कि उनकी मृत्यु ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय लोगों पर किये गये अत्याचार का परिणाम थी। इस अनुभव ने भारतीय स्वतंत्रता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को और मजबूत किया।
फड़के की माँ की मृत्यु उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ मानी जाती है। उनकी मृत्यु के बाद ही उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का आयोजन शुरू किया।
वासुदेव बलवंत फड़के का सशस्त्र विद्रोह
वासुदेव बलवंत फड़के एक मराठी क्रांतिकारी थे जिन्होंने 1879 में ब्रिटिश राज के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व किया था। उन्हें "भारत में उग्रवादी राष्ट्रवाद का जनक" माना जाता है।
फड़के का जन्म 1845 में महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के शिरधोन में हुआ था। उनकी शिक्षा पुणे में हुई और उन्होंने सैन्य लेखा विभाग में क्लर्क के रूप में काम किया।
फड़के ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय जनता पर किये जा रहे अत्याचार से बहुत परेशान थे। उनका मानना था कि स्वतंत्रता प्राप्त करने का एकमात्र रास्ता सशस्त्र संघर्ष है।
1879 में, फड़के ने विद्रोहियों का एक दल बनाया और अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह शुरू किया। विद्रोहियों ने सरकारी कार्यालयों और कोषागारों पर छापे मारे और गरीबों को धन वितरित किया।
फड़के के विद्रोह से ब्रिटिश सरकार घबरा गयी। उन्होंने उसे पकड़ने के लिए बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान चलाया।
जुलाई 1879 में फड़के को बीजापुर जिले में पकड़ लिया गया। उन पर मुक़दमा चलाया गया और उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई। 1883 में 37 वर्ष की आयु में जेल में उनकी मृत्यु हो गई।
फड़के का विद्रोह अल्पकालिक था, लेकिन इसका भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर स्थायी प्रभाव पड़ा। इसने अन्य क्रांतिकारियों को अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाने के लिए प्रेरित किया और भारतीय स्वतंत्रता की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद की।
फड़के के विद्रोह की कुछ प्रमुख घटनाएँ इस प्रकार हैं:
20 फरवरी, 1879: फड़के और उनके सहयोगियों ने पुणे से आठ मील उत्तर में लोनी के बाहर अपने 200-मजबूत मिलिशिया के गठन की घोषणा की।
23 फरवरी, 1879: विद्रोहियों ने पुणे जिले के एक गांव धमारी पर हमला किया और एक धनी व्यापारी के घर को लूट लिया।
10-11 मई, 1879: विद्रोहियों ने कोंकण क्षेत्र के दो गांवों पलासपे और चिखली पर हमला किया।
20 जुलाई, 1879: फड़के को बीजापुर जिले में पकड़ लिया गया।
नवंबर 1879: फड़के को अदन में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
17 फरवरी, 1883: अदन की जेल में फड़के की मृत्यु हो गई।
फड़के का विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की एक महत्वपूर्ण घटना थी। इससे पता चला कि ब्रिटिश राज अजेय नहीं था और इसने अन्य क्रांतिकारियों को अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाने के लिए प्रेरित किया।
वासुदेव बलवंत फड़के को गिरफ्तार कर कालापानी की सजा दी गई
हाँ, वासुदेव बलवंत फड़के को वास्तव में गिरफ्तार किया गया था और बाद में ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों द्वारा कुख्यात कालापानी दंड कॉलोनी में परिवहन की सजा सुनाई गई थी।
फड़के की गिरफ्तारी 1879 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के उद्देश्य से उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों के दौरान हुई। उन पर ब्रिटिशों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का आयोजन करने और नेतृत्व करने का आरोप लगाया गया था, जिसमें क्रांतिकारी आंदोलन को वित्त पोषित करने के लिए सरकारी खजाने पर छापे जैसी कार्रवाई भी शामिल थी।
गिरफ्तारी के बाद, फड़के पर मुकदमा चलाया गया, जिसके दौरान उन्हें राजद्रोह और अन्य आरोपों का दोषी पाया गया। सजा के रूप में, उन्हें कालापानी ले जाने की सजा सुनाई गई, जो बंगाल की खाड़ी में स्थित अंडमान द्वीप समूह में एक दूरस्थ और कठोर दंड कॉलोनी थी। कालापानी तक परिवहन एक गंभीर और अक्सर घातक सज़ा थी, क्योंकि कैदियों को बेहद कठोर परिस्थितियों को सहने और भीषण श्रम करने के लिए मजबूर किया जाता था।
निर्वासन में चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, वासुदेव बलवंत फड़के ने सुदूर अंडमान द्वीप समूह से भी भारतीय स्वतंत्रता के लिए अपना संघर्ष जारी रखा। स्वतंत्रता के प्रति उनकी भावना और समर्पण ने कई अन्य लोगों को प्रेरित किया जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा थे।
फड़के का जीवन, उनकी गिरफ्तारी और कालापानी में उनका निर्वासन भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण अध्याय हैं, जो स्वतंत्र और स्वतंत्र भारत की खोज में उनके जैसे व्यक्तियों द्वारा किए गए बलिदानों को दर्शाते हैं।
वासुदेव बलवंत फड़के का निधन
वासुदेव बलवंत फड़के का निधन 17 फरवरी, 1883 को ब्रिटिश भारत के अदन में हुआ था। वह 37 साल के थे.
जुलाई 1879 में फड़के को अंग्रेजों ने पकड़ लिया और उन्हें अदन में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। जेल में तपेदिक से उनकी मृत्यु हो गई।
फड़के की मृत्यु भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए एक बड़ा झटका थी। वह एक करिश्माई नेता और भारतीय राष्ट्रवादियों के लिए आशा के प्रतीक थे।
वासुदेव बलवंत फड़के की माता का क्या नाम था?
वासुदेव बलवंत फड़के की माता सरस्वती बाई फड़के थीं। 17 जनवरी, 1872 को शिरधोन, रायगढ़ जिला, महाराष्ट्र, ब्रिटिश भारत में उनका निधन हो गया। वह 57 वर्ष की थीं.
फड़के पुणे में सैन्य लेखा विभाग में क्लर्क के रूप में कार्यरत थे जब उनकी माँ बीमार पड़ गईं। उसने उसके साथ रहने के लिए छुट्टी का अनुरोध किया, लेकिन उसके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया। जब वह दूर था तब उसकी माँ की मृत्यु हो गई।
फड़के को अपनी माँ की मृत्यु से बहुत दुःख हुआ। उनका मानना था कि उनकी मृत्यु ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय लोगों पर किये गये अत्याचार का परिणाम थी। इस अनुभव ने भारतीय स्वतंत्रता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को और मजबूत किया।
फड़के की माँ की मृत्यु उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ मानी जाती है। उनकी मृत्यु के बाद ही उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का आयोजन शुरू किया।
वासुदेव बलवंत फड़के का जन्म कहाँ हुआ था?
वासुदेव बलवंत फड़के का जन्म 4 नवंबर 1845 को बॉम्बे के ठाणे जिले (अब महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में) के शिरधोन गांव में सीमित साधनों वाले एक मराठी चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
शिरधोन महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में पुणे शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित एक छोटा सा गाँव है। यह पहाड़ियों और जंगलों से घिरा हुआ एक सुंदर गांव है। फड़के का परिवार मूल रूप से कोंकण क्षेत्र के केल्शी गांव का रहने वाला था।
फड़के के पिता बलवंतराव फड़के एक किसान थे। उनकी मां, सरस्वतीबाई फड़के, एक गृहिणी थीं। फड़के के दो भाई और एक बहन थी।
फड़के एक प्रतिभाशाली छात्र थे और अपनी पढ़ाई में उत्कृष्ट थे। उन्होंने 1862 में बॉम्बे विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। स्नातक होने के बाद, उन्होंने कुछ वर्षों तक सरकार के लिए काम किया। हालाँकि, वह सरकार की नीतियों से असंतुष्ट थे और उन्होंने क्रांतिकारी बनने का फैसला किया।
1879 में फड़के ने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह शुरू किया। उन्हें पकड़ लिया गया और 1883 में फाँसी दे दी गई। उन्हें भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रदूतों में से एक माना जाता है। दोस्तों आप हमें कमेंट करके बता सकते हैं कि आपको यह आर्टिकल कैसा लगा। धन्यवाद ।
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